فارغ نشين، که هيچ نکردي به جاي دل | | گر در دل تو جاي کسي هست غير او |
زين جا درست کن به قياس استواي دل | | دل عرش مطلقست و برو استواي حق |
بروي نبشته سر خدايي خداي دل | | بر کرسي وجود تو لوحيست دل ز نور |
قصاب کوي به ز تو داند بهاي دل | | گر دل به مذهب تو جزين گوشت پاره نيست |
وين عقل و نطق و جان همه زنگ و دراي دل | | دل بختييست بسته بر مهد کبريا |
از نور جام روشن گيتي نماي دل | | کيخسرو آن کسيست که حال جهان بديد |
تا نشنوند واقعهي آشناي دل | | بيگانه را به خلوت ما در مياوريد |
جانها چو ذره رقصکنان در هواي دل | | چون آفتاب عشق برآيد، تو بنگري |
دلدلکنان ز هر سر کويي که: واي دل! | | بگذر به شهر عشق، که بيني هزار جان |
بر قد جان به دست محبت قباي دل | | پيوند دل بديد کسي، کش بريدهاند |
سلطان دلست و سر که بپيچد ز راي دل؟ | | از راي دل گذار نباشد، بهيچ روي |
فيض ازل نزول کند در فضاي دل | | سرپوش جسم اگر ز سر جان برافکني |
من عهد ميکنم به خلود بقاي دل | | گر در فناي جسم بکوشي بقدر وسع |
چون آهن تو زر نشد از کيمياي دل | | نقد تو زير سکهي معني کجا نهند؟ |
چندين مزن به خوان هوس بر، صلاي دل | | چون هيچ دل به دست نياوردهاي هنوز |
تا گشت دامن دل من پر بلاي دل | | عمري گداي خرمن دل بودهام به جان |
افسرده خود کجا شنود ماجراي دل؟ | | گر نشنوي حکايت دل، اين شگفت نيست |
ليکن ترا به گوش نيايد صداي دل | | عالم پر از خروش و صداي دل منست |
چون اوحدي، کسي که بود مبتلاي دل | | ناچار حال دل بنمايد بهر کسي |
دل دردمند شد، ز که جويم دواي دل؟ | | مردم نشسته فارغ و من در بلاي دل |
من نيز بيدلم، چه نوازم نواي دل؟ | | از من نشان دل طلبيدند بيدلان |
بگذر ز جان، تا که ببيني لقاي دل | | رمزي بگويمت ز دل، ار بشنوي به جان |
تا هر چه هست بنگري اندر صفاي دل | | دل را، ز هر چه هست، بپرداز و صاف کن |
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