بريدم مهر و پيوستم دگر بار | | ز جام عاشقي مستم دگر بار |
ز دام عاقلي جستم دگر بار | | به دام عاقلي افتاده بودم |
ترا، آن توبه بشکستم دگر بار | | ز عشقت توبه کردم، چون بديدم |
نپنداري که من هستم دگر بار | | وجودم نيست گشت از عشق، تا تو |
که هم ديوانه، هم مستم دگر بار | | مرا معذور دار، ار بر خروشم |
درين بيچارگي دستم دگر بار | | ز دم در دامنت دست، ار بگيري |